16 जुलाई 2017

शृंगार करूँ (गीतिका)



पदांत- करूँ
समांत- आर
मापनी- 16//14

धीरज रख मन, पी आयेंगे, कुछ तो मैं शृंगार करूँ.
पहले म्‍हावर या मे'हँदी से, हाथ-पैर गुलज़ार करूँ.

पहनूँ चुनरी और लहरिया, छम-छम पहनूँ पैंझनियाँ,
फिर सोचूँगी पी आने पर, कैसे मैं मनुहार करूँ.

सखियों के सँग झूला झूलूँ, पर मन तो है राह तके,
कह न सकूँ मैं सखियों से भी, कितना उनसे प्यार करूँ.

आए पी हुलसा तन-मन जब, सखियों ने भी चुहल करी,
बरसी आँखें देखूँ उनको, नैनों से बौछार करूँ.

सावन भादों जैसे धरती, हरियाली के रंग भरे
ऐसे ही हर रँग में रँग कर, बस पी को स्वीकार करूँ.

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