मापनी-
2122 1212 22
पदांत-
है
समांत-
आना
कुछ
न बोलो, यही जमाना है.
बढ़
के’ आफत, गले लगाना है.
धैर्य
जब से, है’ आदमी भूला,
भूल
होगी, उसे सिखाना है.
सब
दिखावे, के’ रह गये रिश्ते,
सोच
कर ही, उन्हें निभाना है.
उम्र
ने हैं, कई मिसालें दी,
अब
किसी को, न आजमाना है.
जन्म
पाया, है’ हाल हर ‘आकुल’
जिंदगी
को, न हार जाना है.
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