छंद- गीतिका
2122 2122 2122 212
पदांत- सँग
समांत- आर
उड़ चलें हम कल्पना के लोक में दिलदार
सँग.
हो सके घर ले चलें सब भूल के इक बार
सँग.
पंख गुब्बारे बनें अरु घर भी पुष्पक
सा बने,
ले चले मलयज पवन हमको उड़ा उस पार
सँग.
जो परी के देश आयें बीच में मिलते
चलें,
जो सुना जाती थीं’ लौरी रात में
मनुहार सँग.
वो भी’ क्या दिन थे न उड़ने से कभी
भी खौफ़ था,
चाँद की बारात में पहुँचे थे हम
अधिकार सँग.
रात काटें यदि कहीं मिल जाये हमको
चाँदनी,
जा सकें मेहमान बन कर चाँद के दरबार
सँग
स्वप्न सच करना है तो जाओ चुनो इक
राह तुम,
दौड़ना मंजिल मिलेगी वक्त की
रफ्तार सँग
प्रेम का संदेश पहुँचायें क्षितिज
तक लो चलो,
पा सको तो जीत लो मन उड़ सकोगे प्यार
सँग.
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