छंद-
निश्चल
शिल्प विधान-
16,7 पर यति अंत 21 से अनिवार्य.
जो खेले शतरंज जानता, हर इक
चाल.
बचता और बचाता है वह, अपनी
खाल.
मोहरे चलें अपनी अपनी, चाल
विशेष,
चौंसठ घर के इस बिसात का,
खेल कमाल.
इक वजीर के संग नृपति की,
करें सँभाल.
हाथी सीधा आड़ा चलता, टेढ़ा
ऊँट,
घोड़ा ढाई घर पर कूदे, करे
धमाल.
संग त्रिदल करते आरोहण,
युद्ध प्रवीण,
अग्रपंक्ति में होते प्यादे,
अष्ट कराल.
करे आक्रमण रण में पहली,
पैदल पंक्ति,
आम आदमी का जीवन में, यह ही
हाल.
लोकतंत्र भी है शतरंजी, एक
स्वरूप,
मोहरे बनें आम आदमी, इसमें
ढाल.
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