शिल्प विधान-
16,7 पर यति अंत 21 से अनिवार्य.
छंद- निश्चल
पदांत- है इनसान.
समांत- ईता
सदा न हालाहल ही पीता, है इनसान.
कभी हार कर भी तो जीता, है इनसान.
करना होगा उसको जीवन, पर विश्वास,
उम्मीदों पर ही तो, जीता, है
इनसान.
कर्मण्ये’वाधिकारस्ते है, जीवन
मूल्य,
पढ़ता सदा इसलिए गीता, है इनसान.
कैसी भी हवा चले, छूटा, कभी न कर्म,
इसीलिए तो कभी न रीता, है इनसान.
उत्सव होते जीने-मरने, पर हर रोज.
सद्गति-दुर्गति से ही बीता, है
इनसान.
धन दौलत है चंदन जिस पर, लिपटें
सर्प.
फिर भी भरता रोज खरीता, है इनसान.
‘आकुल’ खेल खेलती हर दिन, जीवन-मृत्यु.
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