छंद-
रास
बस ! अबला का, चोला नारी, अब त्यागे.
शिल्प
विधान- मात्रा भार 22. 8, 8, 6 पर यति अंत 22.
बस ! अबला का, चोला नारी, अब त्यागे.
काली
ने ज्यों, संहारा था, असुरों को,
पाप
घटेगा, नारी जो अब, हर जागे.
बढ़ें
कभी जब, अत्याचारी, दुष्कर्मी.
अस्त्र
उठें तब, सीमाएँ जब, छल्लाँगे.
बेटे
की दी बलि, वह वीरा, पन्ना थी,
लक्ष्मीबाई,
जोधा जैसी, वह लागे.
शृंगार
नहीं है नारी का, जौहर अब,
दुश्मन
को अब, रणचंडी सी, बन दागे.
देवों,
वीरों, ने सीमा की, रक्षा की,
आदि
शक्ति से, घर के दुश्मन, हैं भागे.
नारी
तुमको, बनना है अब, नवदुर्गा,
नहीं
बाँधना, है अब मन्नत, के धागे.
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