छंद- लावणी
प्यास बुझे यह नहीं जरूरी, बनी
रहे अभिलाषा सी,
पदांत- मिले
समांत- आँव
मेरे हिस्से धूप कड़ी हो, तुझको कोमल छाँव मिले.
मेरे हिस्से
सख्त जमीं हो , तुझको रेशम ठाँव मिले.
मधुबन सी
सुरभित हो जीवन, बगिया तेरी हरी-भरी,
कविता गाती
मिले कोकिला, क्यों कौए की काँव मिले.
ईश्वर ने जब
रूप दिया है , कोमल फूलों के जैसा,
कोमल पथ ही
मिलें न घायल, क्यों कोई भी पाँव मिले.
क्यों
चाहूँ वह प्रीत ते’री जग, जिसका कोई मोल रखे,
मिले मुझे
तू निश्छल निष्ठित, नहीं कभी भी दाँव मिले.
मुझको मृगमरीचिका में भी,
‘आकुल’ इक नँदगाँव मिले.
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