छंद-
लीला (14,10 पर यति अंत सगण (112) से
पदांत-
ऐसा जीवन हो
समांत-
अके (अकारांत)
तन
मन स्वस्थ रहें सबके, ऐसा जीवन हो.
योग
करें सब नित तड़के, ऐसा जीवन हो.
दिनचर्या
भी हो ऐसी, जन सौहार्द बढ़े,
सहयोग
करें बढ़-बढ़ के, ऐसा जीवन हो.
तन
तंदुरुस्त हों सबके, हौसले पंख बनें,
विजयी
बनें शिखर चढ़के, ऐसा जीवन हो.
तकनीकी
युग में पल पल, का मोल समझ लें,
परिणाम
मिलें प्रति क्षण के, ऐसा जीवन हो.
अग्नि
परीक्षा देनी हो, पीछे क्यों हटना,
बदले
की आग न भड़के, ऐसा जीवन हो.
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