दिन
रात, देखते हैं, पथ, कोई खबर न,
आहट,
न जाने, किस घर, नगर में, मे’हमान, हो गया है.
न जाने, किस घर, नगर में, मे’हमान, हो गया है.
यादें
ही’ तो, बची हैं अब, बिखरी,
जहाँ-तहाँ पर,
मनमोहना, कहाँ तू, अंतर्धान, हो गया है.
मनमोहना, कहाँ तू, अंतर्धान, हो गया है.
दिन-रात, बीतते,
हैं अब, स्मृतियों के’, खण्डहर
में
वृंदावन भी’ अब तभी से, बिया’बान, हो गया है.
वृंदावन भी’ अब तभी से, बिया’बान, हो गया है.
मौसम
के जैसे, वे दिन, आयेंगे, लौट के’,
क्या,
भाता न, गीत है अब, अरण्यगान, हो गया है.
भाता न, गीत है अब, अरण्यगान, हो गया है.
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