छंद-
दोहा
गर्मी
में अब तो गरम, होती है हर भोर.
चल
‘आकुल’ ऐसा करें, प्रकृति रहे खुशहाल,
कण-कण
वसुधा का फले, महके चारों ओर.
रातों
में लू की तरह, हवा मचाये शोर.
बीतें
ले कर करवटें, अकुलाहट में नित्य,
रातें
जगते ही कटें, जैसे जगते चोर .
सोच
सोच कर है दुखी, फिर किसान इस बार,
भीषण
गर्मी सी नहीं, हो वर्षा घनघोर.
मौसम
के लगते नहीं, हैं अच्छे आसार,
बेमौसम
बरसात पर, चलता किसका जोर.
प्रकृति
वल्लभा की दशा, देख सूर्य का तेज,
नीलगगन
भी मौन है, व्याकुल धरा कठोर.
पवन
झकोरा आएगा, गुजर जाए'गी रात,
मौसम
से टूटे नहीं, बस जीवन की डोर.
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