23 जून 2018

जब तक है इंसान जंगली (गीतिका)

छंद- ताटंक 
विधान- 16, 14 पर यति अंत 3 गुरु से.

जब तक है इंसान जंगली, ताक़त ही दिखलायेंगे. 
सेंध लगाते जो रिश्‍तों में, कभी न प्रीत निभायेंगे.  

देते घाव कई गहरे जो, हाथ रखें दुखती रग पर,
एक न एक घाव उनके भी, नासूरी बन जायेंगे.

दो जिह्वा, तन-मन काले हैं, सोते हैं जो जगते ही,
सर्प प्रकृति के हैं समझो वे, ज़हर सदा बरसायेंगे.

न खायें न खाने दें जिसको, प्रकृति विघ्‍नसंतोषी हो,
कह कर लें आनंद सदा जो, घरफोड़े कहलायेंगे.

तोताचश्‍म कहें उनको जो, आँख फेर लें मौके पर,
होते हैं जो अवसरवादी,  सदा हानि पहुँचायेंगे.

कब्रिस्‍तान बढ़ेंगे जग में, खार बनायेंगे धरती,
नहीं करेंगे प्रेम प्रकृति से,  मुर्दे जंगल खायेंगे.

पंचमहाभूतों का' संतुलन, जब तक न धरा पर होगा,
कोई भी युग प्रकृति, मृत्‍यु पर, विजय नहीं कर पायेंगे.


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