18 जून 2018

मिला यह तन, पिता माता का ही प्रतिदान होता है (गीतिका)

छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- होता है
समांत- आन
(पिता दिवस पर)
मिला यह तन, पिता-माता का’ ही, प्रतिदान होता है.
सभी परिवार में, हर एक की, पहचान होता है.

मिला है  नाम, दुनिया में बदौलत, उनके ही यारो,
पिता माता के’, गुणसूत्रों का’ वह, संज्ञान होता है.

पिता, माता का है सौभाग्‍य, घर का है, वो’ कुलभूषण,
धुरी परिवार, की होता पिता, अधिमान होता है

बिना माता-पिता के घर, नहीं होता, कभी भी घर,
बिना संतान, के भी घर सदा, सुनसान होता है.

प्रतिष्‍ठा मान अरु सम्‍मान, हासिल करना’, जीवन में
पिता-माता के, हर इक त्‍याग का, गुणगान होता है.     

पिता को है, कहा ग्रंथों ने', सौ गुरुओं से' बढ़ कर ही
इसी कारण, पिता इक रूप में, भगवान होता है.
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उपाध्यान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता।
सहस्त्रं तु पितृन माता गौरवेणातिरिच्यते।।

अर्थात, दस उपाध्यायों से बढ़कर आचार्य’, सौ आचार्यों से बढ़कर पिताऔर 
एक हजार पिताओं से बढ़कर मातागौरव में अधिक है, यानी बड़ी है।

पिताके बारे में मनुस्मृति में तो यहां तक कहा गया है:
 ‘‘पिता मूर्ति: प्रजापतेः’’
अर्थात, पिता पालन करने से प्रजापति यानी राजा व ईश्वर का मूर्तिरूप है।
 

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