त्योहारों-पर्वों
को भी अब
एक
नई दस्तक देनी है.
आए
पहले देव कनागत
हुई
देवियों की भी आगत
बाद
दिवाली और दशहरा
होना
नव सत्ता का स्वागत
रामराज्य
के लिए लगा अब
अग्नि
परीक्षा तक देनी है.
अपने
ही अपनों से आहत,
होगा
कौन-कौन शरणागत.
अहं
और बल की शह पर प्रभु
हो
न एक और महाभारत.
लोकतंत्र
के शाने पर अब
कुछ
को तो रुखसत देनी है.
उत्साहों
में कमी नहीं पर
पैरों
में अब जमीं नहीं पर.
लागू
है आचार संहिता
खुशियाँ
ही हैं गमी नहीं पर,
तूफाँ
से पहले की शांति है
आहुतियाँ
अब तय देनी है.
चलो
दीप से दीप जलायें
एक
सूत्र बँध पर्व मनायें
देखें
अब उजास उन्नति का
प्रेम
और सौहार्द बढ़ायें
फैले
प्रभा दीप की, किरणें
धरती
से नभ तक देनी है
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