गीतिका
छंद- सरसी/
कबीर
पदात- देखते
हैं
समांत- ओर
दे जाए कुछ संदेशा कल, भोर, देखते हैं?
लेगा करवट ऊँट
कौनसी, शोर देखते हैं?
साल खड़ा अब जाने को दिन, करें विदा हँस कर,
क्या पाने को,
नाच रहा मन, मोर देखते हैं?
सोपानों पर चढ़े उम्र पर, धीरे-धीरे अब,
कितनी है रफ्तार
समय की, जोर देखते हैं?
करें आकलन क्या खोया इक, अदद तसल्ली को,
है कितनी मजबूत
साँस की, डोर देखते हैं?
मिला बहुत हों, आभारी कुछ, कर गुजरें ‘आकुल’,
बनें युगंधर, जो आगे की, ओर देखते हैं?
-आकुल
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