छंद- रोला
पदांत- हैं
समांत- अले
दोहन धरती,
वृक्ष, क्षरण, जल प्लावन एवं,
पर्यावरण खराब,
जरूरी कुछ मसले हैं।2।
वक्रदृष्टि को
देख, न समझें हालातों को,
चलते प्रकृति
विरुद्ध, नहीं अब तक सँभले हैं।3।
प्रेम और सद्भाव,
हुए हैं हवा अभी तो
मानवता पर आज,
हो रहे जो हमले हैं।4।
अहंकार में
मस्त, बना दानव है मानव,
बारूदों से
आज, उसी के गढ़ दहले हैं।5।
दुख तो यह है
मित्र, चाल शतरंजी है यह,
चलते तो हैं
चाल, सदा प्यादे पहले हैं।6।
लेगा करवट
ऊँट, हवा भी रुख बदलेगी,
’आकुल’ तो है मौन, फालतू के जुमले हैं।7।
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