गीतिका
छंद- पियूष पर्व (मात्रिक)
मापनी- 2122 2122 212
पदांत- जा सके
समांत- आया
गीत वह जो गुनगुनाया जा सके।
रोते हुओं को भी’ हँसाया जा
सके।1।
जो अकेले में भुला दे दर्द
को
और प्रियतम को बुलाया जा
सके।2।
जो बना दे एक बंधन प्रीत का,
और जो गा कर लुभाया जा सके।3।
टूट भी जाये हवायें जो चलें,
टूट कर भी जो निभाया जा
सके।4।
जो कभी लौरी कभी रसिया बना
जी करे वैसा बनाया जा सके।5।
-आकुल
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