7 जनवरी 2023

दाँतों की इस भीड़ में.... (कुंडलिया छंद)

 1

कटती दाँतों से रही, जिह्वा कितनी बार ।

लड़ते फिर भी संग में, करते सब व्‍यवहार ।

करते सब व्यवहार, स्‍वाद भी सँग-सँग चखते ।

मगरमच्‍छ से बैर, नहीं पानी में रखते । 

एक अकेली कीर्ति, जीभ की कभी न घटती ।

दाँतों की बत्‍तीस, सोचते रात न कटती ।।  

कर दे सबको आलसी, जमे रहें बत्‍तीस ।

दाँत काटकर जीभ को, झाड़ें अपनी खीस

झाड़ें अपनी खीस, जीभ में धीरज इतना ।

यह भी जानें दाँत, प्रेम वह करती कितना ।

चखती पहले स्‍वाद, बाद दातों को भर दे ।

निगले फिर वह साफ, सभी दाँतों को कर दे ।।

3

दाँतों की इस भीड़ में, जीभ अकेली एक ।

शत्रु भले बत्‍तीस हों, नीयत रखनी नेक

नीयत रखनी नेक, एक दिन उन्हें बिछड़ना ।

टूटेंगे सब दाँत, अंत तक उन्‍हें न छड़ना ।

बनते हरदम ढाल, धनी वह भी बातों की ।

इसीलएि तो ध्‍यान, रखे वह भी दाँतों की ।।


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