1
कटती दाँतों से रही, जिह्वा कितनी बार ।
लड़ते फिर भी संग में, करते सब व्यवहार ।
करते सब व्यवहार, स्वाद भी सँग-सँग चखते ।
मगरमच्छ से बैर, नहीं पानी में रखते ।
एक अकेली कीर्ति, जीभ की कभी न घटती ।
दाँतों की बत्तीस, सोचते रात न कटती ।।
2
कर दे सबको आलसी, जमे रहें बत्तीस ।
दाँत काटकर जीभ को, झाड़ें अपनी खीस ।
झाड़ें अपनी खीस, जीभ में धीरज इतना ।
यह भी जानें दाँत, प्रेम वह करती कितना ।
चखती पहले स्वाद, बाद दातों को भर दे ।
निगले फिर वह साफ, सभी दाँतों को कर दे ।।
3
दाँतों की इस भीड़ में, जीभ अकेली एक ।
शत्रु भले बत्तीस हों, नीयत रखनी नेक ।
नीयत रखनी नेक, एक दिन उन्हें बिछड़ना ।
टूटेंगे सब दाँत, अंत तक उन्हें न छड़ना ।
बनते हरदम ढाल, धनी वह भी बातों की ।
इसीलएि तो ध्यान, रखे वह भी दाँतों की ।।
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