गीतिका
छंद- कुंडल
विधान- प्रति चरण मात्रा 22,
12, 10 पर यति अंत दो गुरु वाचिक
पदांत- में
समांत- ओली
क्या रक्खा है यारो, हँसी
ठिठोली में।
बातें हों जब भी हों, मीठी
बोली में।1।
अपना लागे उससे ही, मिलना
खुल कर,
ऐसे ही गुण होते हैं, हमजोली
में।2।
संस्कारी हों तो घर, ऊर्जित
होना तय,
जैसे रंग सुहाते, हैं रंगोली
में।3।
मानो या ना मानो, धर्म एकता
को,
देखा है बल मिलता, केवल टोली
में।4।
नींव पड़े रिश्तों से, ही
देखो ‘आकुल’,
ईद दिवाली हो या क्रिसमस
होली में।5।
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