गीतिका
गण विधान- म म म म म ग
मापनी- 111 111 111 111 111 2
पदांत- कर तू
समांत- अन
इधर-उधर न भटक, जतन कर तू।
सुन कटु वचन क्षणिक, मनन कर तू।
बस कह मृदु वचन ढक नयन अपने
प्रभु पद मन धर कर, सहन कर तू।
कपट, छल, बल, कल, सब सहज नहीं,
बिन दम मत अनबन, किमपि कर तू।
न कर गड़बड़ कुपित, बन घर जले,
सुधर जल बन अनल, शमन कर तू।
वन, उपवन, जल, थल, नभ, खुश तभी,
अब समय हर तरफ, अमन कर तू।
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