गीतिका
छंद- सरसी
विधान- 16, 11 (चौपाई +दोहे का सम चरण ) अंत 21
पदांत- मित्र
समांत- ऊरी
बच्चों में
संस्कार डालना, बहुत जरूरी मित्र।
रह जाए ना कोई
शिक्षा, कहीं अधूरी मित्र ।
आत्मसुरक्षा
के गुर सीखें, नित्य करें व्यायाम,
खेलों से भी
उनकी रखना, कभी न दूरी मित्र।
आधारशिला है
धर्म उन्हें, करवाना संज्ञान,
आहार-विहार
सदा देता, ऊर्जा पूरी मित्र।
भृति, पूँजी, साहस और भवन, यही आय के
स्रोत,
काम सही हो
चाहे करनी, पड़े मजूरी मित्र।
'आकुल' देना
सीख बन सकें, सुसंस्कृत व सम्भ्रान्त,
बिगड़े न
व्यवहार हो कैसी, भी मजबूरी मित्र।
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