16 मई 2024

सोच लीजे.....

 कविता

सोच लीजे ..... 
बस्तियों की सड़कें जब पैबंद वाली हों,
नालियाँ कीचड़ भरी सड़ाँध वाली हों,
नदियाँ जहाँ पर बाँध वाली हों,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे....
लाइलाज अस्पतालों में इलाज,
बन गये कबाड़खाने भी गैराज,
खुद के पैरों कुल्हाड़ी मारी ज्यों पा के स्वराज,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे....
स्वच्छ भारत में सफाई की दशा शोचनीय,
सुलभ शौचालयों की दशा अशोभनीय,
खुले आम मदिरालयों की दशा क्षेाभनीय,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
बैंकों का विलय कर आफत दे दी,
नोटबंदी की गंदी सियासत दे दी,
घोटाले करने की रियायत दे दी,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
हर जगह भाँग घुली है कहाँ जायें,
विकल्प ही नहीं छोड़ा कहाँ जायें,
गाँधीवादी बनें या वामपंथ अपनायें,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
रक्षक भक्षक हो रहे और आरक्षण की सौगातें,
तक्षक बनी डस रही हैं जात-पाँत की बातें,
नई नई समस्याओं से कैसे मिलेगी निजातें,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
दुष्कर्म, तीन तलाक, आरक्षण, घोटाले,
सफाईकर्मियों की पौ बारह, बैठे ठाले,
तकनीकी प्रदूषण से बस ईश्वर बचाले,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
आक्रोशित युवापीढ़ी को समझना आसान नहीं है,
स्थाई को पेंशन नहीं, निष्पक्ष कोई सम्मान नहीं है,
संविदाकर्मियों को समय पर भुगतान नहीं है,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
सोच लीजे..........

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