पदांत- है
समांत- आई
बरखा का संदेशा लेकर, बदली आई है।
संग पवन भी ठंडी-ठंडी, चली सुहाई है।1।
अंजुरि में भर लूँ अमरित घट, छलक रहा उससे,
ऋतु ने दे दी है आहट करनी अगुवाई है।2।
हर ऋतु की अपनी सुंदरता, प्रकृति भरे वैभव,
जिसका जो भी दृष्टिकोण हो, वैसी पाई है।3।
धरती होगी तृप्त खेत खलिहान रिझायेंगे,
दादुर बोले, खुश हो कर कोयलिया गाई है।4।
रश्मिरथी किरणों से इंद्रधनुष में रंग भरे,
जलधर ने हर बार बरस कर प्यास बुझाई है।5।
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