गीतिका
छंद- नरहरि
विधान- प्रति चरण 19 मात्रा । 16, 3 पर यति। अंत लघु-गुरु
पदांत- करें
समांत- अन
सभी पितृ चरणों को वंदन, करें।
विहित कर्म सर्वजन सहज मन, करें।
इतना करें न कर पाएँ तर्पण यदि ,
समक्ष सूर्य जलांजलि अर्चन, करें।
मृत्यु चतुर्दशी पूर्णिमा
हो, अगर,
व्यतीपात महालय प्रबंधन, करें।
श्राद्ध हो सके न परिस्थितिवश किसी,
सर्वपितृ मावस समावर्तन, करें।
न कर पाएँ फिर
भी सकारण, तभी,
बिना गऊ ग्रास दे न भोजन, करें।
संस्कार हम सब के धरोहर, सभी,
समाधान ढूँढें न विलोपन, करें।
सदा सोचते रहें पीढ़ियों के, लिए,
कि क्या दे चलें नित्य मंथन करें।