आज शिक्षक दिवस और गणेश चतुर्थी है। श्री गणेश, गुरू पर रचनायें-
प्रथम पूज्य श्री गणेश पर दो कुण्डलिया छंद-
इनका अनुपम रूप है, लम्बोदर गणनाथ।
श्रीगणेश बैठें सदा, ऋद्धि-सिद्धि के साथ।
ऋद्धि-सिद्धि के साथ, चतुर्भुज रूप लुभाए।
परिकम्मा कर मातु, जगत् में प्रथम कहाए।
कह 'आकुल' कविराय, भोग प्रिय मोदक इनका।
भादों सुद की चौथ, जनम दिन मनता इनका।।1।।
गणनायक गणनाथ तुम, शैलसुता के पूत।
विघ्न हरण तुम श्रेष्ठ हो, धन्य समर्थ अकूत।
धन्य समर्थ अकूत, कार्तिकेय बने षडानन।
नीलकंठ ने दिया, अनोखा रूप गजानन।
कह 'आकुल' कविराय, भूजूँ मैं प्रथम विनायक।
करूँ नमन गजवदन, मनाऊँ मैं गणनायक।।2।।
गुरु श्री पर कुछ दोहे- (ब्रजभाषा में)
अक्षर ज्ञान दिवाय कै, उँगली पकड़ चलाय।
गुरु ही पार लगाय या, केवट पार लगाया।। 1।।

गुरु से 'आकुल' जगत् में, दूर होयँ त्रय ताप।
आश्रय गुरु को जो रहै, दूर रहें संताप ।।2।।
दीक्षा, ज्ञान व धर्म गुरु, इनकौ नायँ न जोड़।
चलै संस्कृति इन्हीं सौं, इनकौ नायँ न तोड़।।3।।
मात-पिता-गुरु-राष्ट्र ऋण, कोउ न सकै उतार।
जीवन में इन चार की, चरण धूरि सिर धार।। 4।।
गुरु कौ सिर पै हाथ जो, भव सागर तर जाय।
श्रद्धा, निष्ठा,प्रेम, जस, धन, सरस्वती आय।। 5।।
ऊँचौ गुरु को थान है, कहवै यह इतिहास।
सुर-मुनि-देव-अदैव सब, करें नित्त अरदास।।6
।।
शिक्षक दिवस पर रचना पढेें-