(उड़ी दु:खान्तिका पर)
1-
आओ चलो नमन करें,श्रद्धा सुमन अर्पण करें ।
रणबाँँकों के बलिदान पर, बस यही तर्पण करें।
जो चले सदैव अडिग रहे, स्वधर्म कर्मपंथ पर,
वतन पे हुतात्माएँँ ही, बस देह समर्पण करें।।
2-
रात भर सोचा किए जुबान में कब तलक छाले रहेंगे।
जल रहा है देश सबके मुँह पर, कब तलक ताले रहेंगे।
डस रहे हैं बार-बार आस्तीन में छिपे जहरीले नाग,
बन के नासूर घााव बगल के, कब तलक पाले रहेंगे।।
(फितरत)
3-
गुलाब से ताज बनाया, हार बनाया पर खार नहीं जोड़ा।
ढूँढ़ा किए दोस्त को, दुनिया का कोई बाजार नहीं छोड़ा।
जिसने भी निभाई दोस्ती फूलों से ही निभाई 'आकुल',
इसीलिए कभी मैंने अपनी असलियत को यार नहीं छोड़ा।।
4-
गुलशन में ढूँढ़ा तुझे गुलाब लिए।
सहरा में भटकता रहा सराब लिए।
शाम को शमा थी और खामोशी थी,
रात मिली तेरा इक हसीन ख्वाब लिए।।
5-
भेंट अनुग्रह कीजिए, बढ़ता उनसे प्रेम।
पत्र पुष्प के साथ हो, मिलते बहुत सप्रेम।
फिर देखों नित करेंगे, कुशल-क्षेम की बात।
कैसा दुनिया का चलन, कैसा निश्छल प्रेम।।
1-
आओ चलो नमन करें,श्रद्धा सुमन अर्पण करें ।
रणबाँँकों के बलिदान पर, बस यही तर्पण करें।
जो चले सदैव अडिग रहे, स्वधर्म कर्मपंथ पर,
वतन पे हुतात्माएँँ ही, बस देह समर्पण करें।।
2-
रात भर सोचा किए जुबान में कब तलक छाले रहेंगे।
जल रहा है देश सबके मुँह पर, कब तलक ताले रहेंगे।
डस रहे हैं बार-बार आस्तीन में छिपे जहरीले नाग,
बन के नासूर घााव बगल के, कब तलक पाले रहेंगे।।
(फितरत)
3-
गुलाब से ताज बनाया, हार बनाया पर खार नहीं जोड़ा।
ढूँढ़ा किए दोस्त को, दुनिया का कोई बाजार नहीं छोड़ा।
जिसने भी निभाई दोस्ती फूलों से ही निभाई 'आकुल',
इसीलिए कभी मैंने अपनी असलियत को यार नहीं छोड़ा।।
4-
गुलशन में ढूँढ़ा तुझे गुलाब लिए।
सहरा में भटकता रहा सराब लिए।
शाम को शमा थी और खामोशी थी,
रात मिली तेरा इक हसीन ख्वाब लिए।।
5-
भेंट अनुग्रह कीजिए, बढ़ता उनसे प्रेम।
पत्र पुष्प के साथ हो, मिलते बहुत सप्रेम।
फिर देखों नित करेंगे, कुशल-क्षेम की बात।
कैसा दुनिया का चलन, कैसा निश्छल प्रेम।।
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