'वामन जयंती' (13 सितम्बर,2016 को) के अवसर पर 'वामन अवतार' पर रोला छंद (11-13) में कथा-
बलि दयालु प्रह्लाद, पौौत्र सुत असुर विरोचन।
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कश्यप-अदिति सुपुत्र, प्रथम त्रेता अवतारी।
वामन रूप स्वरूप, धरा कुछ सोच विचारी।
वामन अवतार |
जीत लिया तिरलोक, किया तप सिद्ध प्रयोजन।।1।।
राजसभा में पहुँच गये, मुनि वामन बन कर।
बलि जब हुआ प्रसन्न, देख बालक सा मुनिवर।
बलि ने तप से जीत, त्रिलोकी राज बढ़ाया।
था प्रबुद्ध किन्तु बलि, उनको हरा न पाया।।
2
।।
वामन का अवतार, धारि पग तीन बढ़ाए।
देवलोक, भूलोक, लिए मुनि माथ बिठाए।
कर अमरत्व प्रदान, बलि पाताल बिठाए।
देवलोक पा इन्द्र, पुन: सुरपति कहलाए।।3।।
प्रकट हुए अच्युत, स्वरूप विराट दिखाया।
बलि को दी उपाधि, वह महा बली कहलाया।
कह 'अाकुल' कविराय, सुरासुर सभी मनाए।
यह ब्राह्मण अवतार, धर्म की राह बताए।।4।।
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