4 सितंबर 2016

हँस कर जी मितरा तू

ग़ज़ल 
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सुख में नहीं कभी इतरा तू।
दुख को नहीं कभी छितरा तू।
ये जीवन है आँँख-मिचौली,
इसको हँस कर जी मितरा तू।

मग़रिबज़दा  जमाना याराँँ,
थोड़ा इनसे भी कतरा तू।

सरज़मीन  का ग़र हामी  है,
तब ना बिलकुल भी घबरा तू।

मौसम तो बदला करते हैं,
Image result for छोटी छोटी खुशियाँइनसे नहीं कभी टकरा तू।

बस छोटी-छोटी खुशियों को,
जोड़ सदा क़तरा-क़तरा तू।

ग़म हलका करती हैं बातें,
अपनों से मिल-जुल बतरा तू।

याद करेंगे बाद जहाँँ सब,
दे हो जितना भी फितरा  तू ।

अमृत-विष है जीवन 'आकुुल'
इस को हँस कर पी मितरा तू।

मग़रिबज़दा- पश्चिमी सभ्‍यता का अनुसरण करने वाला
सरज़मीन- मुल्‍क, मातृभूमि, हामी- समर्थक, फितरा- दान.

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