1 फ़रवरी 2017

बसंत

गीतिका 

जाने को है शरद,  माघ का सावन हुआ बसंती.
रुत बसंत की भोर, आज मनभावन हुआ बसंती.   

बौर खिले पेड़ों पर, लहराई गेहूँ की बाली,     
मनुहारों, पींगों की रुत मनमादन हुआ बसंती.

आहट होने लगी फाग की, पवन चली मधुमासी,
चढ़ने लगा रंग तन-मन पर दामन हुआ बसंती.

डाल डाल पर फूल खिले, ली अँगड़ाई कलियों ने,
नंदन कानन, अभ्‍यारण्‍य‘, वृन्‍दावन हुआ बसंती.

‘आकुल’ आया बसंत दूत ले कर संदेशा घर-घर,
 करने अंत विद्वैष-वैर,  घर आँगन हुआ बसंती.

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माघ का सावन - मावठ, मनमादन- कामदेव रूपी मन
बसन्‍त दूत- कोयल 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बासंती रंग और महक से दिल कुश हो गया।बधाई आकुल जी।

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    1. आभार आदरणीय. आप का नियमित ब्‍लॉग पर भ्रमण विश्‍वास जगाता है. धन्‍यवाद.

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