17 दिसंबर 2017

कविता तू माँ के जैसी है (गीतिका)

आधार छंद- आल्‍ह.
शिल्‍प विधान- मात्रा भार- 31. 16, 15 पर यति, अंत 21
पदांत- करती छंद समाज
समांत- इत

कविता तू माँ के जैसी है, पोषित करती छंद समाज.
कभी गीतिका कभी गीत से, शोभित करती छंद समाज.
 
जन्म दिये तूने शब्दों से, किसी विधा से रखा न वैर
छंद-मुक्त या छंद-युक्त हो, बोधित करती छंद समाज.

बनी हाइकू, बनी माहिया, तांका कभी बनी नवगीत,
भिन्न शब्द-पुष्पों से सुरभित, मोहित करती छंद समाज.

महाकाव्‍य या खंड-काव्‍य हो, गद्य-पद्य का विरचित रूप,
पद्य, श्लोक, मुक्तक को रचती, योजित करती छंद समाज.

आकुलकविता मूल काव्य का, रूप विलक्षण आद्योपांत.
कविता ही विकल्प है सबका, घोषित करती छंद समाज.

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