छंद-
रास.
शिल्प
विधान- मात्रा भार 22. 8,8,6 पर यति,
अंत 112 (वाचिक)
पदांत-
कर
समांत-
अस
माना
प्रिय बिस्तर, कंबल उठ, साहस कर.
सूरज
का धुँधला रहता पथ, सर्दी में,
करता
प्रतिदिन सूर्य भ्रमण बस, मानस कर.
अनुकूल
रहें, पशु मौसम के, सब जानें
हर
मौसम की, प्रकृति अलग चल, अब बस कर.
प्रकृति
ने किये, छोटे हर दिन, रात बड़ी,
बढ़ता
जाये क्यों, आलस तन, आयस कर.
‘आकुल’
कोशिश, कौन करेगा, खग से बढ़,
कौए
जैसी, कर चेष्टा मन, वायस कर.
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