29 दिसंबर 2017

जाते जाते साल कह रहा (गीतिका)

छंद- लावणी
शिल्‍प विधान- मात्रा भार- 30. 16, 14 पर यति अंत 3 गुरु वाचिक.
पदांत- मुझसे
समांत- आया

जाते-जाते साल कह रहा, सोचो क्या पाया मुझसे.
किसने पाई खुशी, परेशाँ, कौन है' भरपाया मुझसे.
 
पाना-खोना मेरे वश में, नहीं समय कब रुका यहाँ,
मैंने वो बाँटा मौसम ने, जो भी बँटवाया मुझसे.

मैं आया जब थे सारे खुश, सबने स्वागत खूब किया,
धन्य यहाँ हैं सब खुश-नाखुश, उनको मिलवाया मुझसे.

मेरा यह कहना है सबसे, मैंने जो तुम में देखा,
जितना चले सफल तुम सारे, से'हरा बँधवाया मुझसे.

इंसानों की दुनिया में क्या, है बिसात मेरी आकुल
मैंने वही किया है जो भी, उसने* करवाया मुझसे.

(*उसने- यहाँ इसे समय, इंसान, र्इश्वर के संदर्भ में पढ़ा जा सकता है.)

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