छंद- लावणी
शिल्प विधान- मात्रा भार- 30.
16, 14 पर यति अंत 3 गुरु
वाचिक.
पदांत- मुझसे
समांत- आया
पाना-खोना
मेरे वश में, नहीं समय कब रुका यहाँ,
मैंने वो बाँटा मौसम ने, जो भी बँटवाया मुझसे.
मैं
आया जब थे सारे खुश,
सबने स्वागत खूब किया,
धन्य यहाँ हैं सब खुश-नाखुश, उनको मिलवाया मुझसे.
धन्य यहाँ हैं सब खुश-नाखुश, उनको मिलवाया मुझसे.
मेरा
यह कहना है सबसे,
मैंने जो तुम में देखा,
जितना चले सफल तुम सारे, से'हरा बँधवाया मुझसे.
जितना चले सफल तुम सारे, से'हरा बँधवाया मुझसे.
इंसानों
की दुनिया में क्या,
है बिसात मेरी ‘आकुल’
मैंने वही किया है जो भी, उसने* करवाया मुझसे.
मैंने वही किया है जो भी, उसने* करवाया मुझसे.
(*उसने- यहाँ इसे समय, इंसान, र्इश्वर
के संदर्भ में पढ़ा जा सकता है.)
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