आधार छंद- सार
शिल्प विधान-मात्राभार28.16,12 पर यति,अंत 2 गुरु अनिवार्य
पदांत- जाना
समान- अम
ऋतुओं, प्रकृति, चराचर सबने, जीवन का क्रम जाना.
मानव ही न रहा अविचल बस, उसने मतिभ्रम जाना.
इसीलिए मानव को मिली न, विजय मृत्यु पर शायद,
मृत्यु मिली मानव ने जब भी, जीवन अनुक्रम जाना.
जिसने जितना पाया बढ़ती, जाती उसकी तृष्णा,
पथभ्रष्टों के प्रतिमानों को, कभी न अतिक्रम जाना.
स्वेद बहाते श्रमिकों का है, देखा घोर परिश्रम,
श्रमिकों ने तो केवल सुख ही, जीवन का श्रम जाना.
शृंगार, रूप ने मानव को, जब-जब पाठ पढ़ाया,
मोहभंग है हुआ कभी जब, तभी पराक्रम जाना.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें