(1) विलोम शब्द आज्ञा // अवज्ञा
मुक्तक (आज्ञा) छंद- सार
शिरोधार्य
हो जब होती हैं, आज्ञाएँ गुरुवर की.
नहीं
दुराग्रह या होतीं हठ, चेष्टाएँ तरुवर की.
मिलता
है आशीष मिला है, सत्पथ सदा सभी को,
कभी
विफल नहीं जाती हैं, प्रार्थनाएँ ईश्वर की.
मुक्तक (अवज्ञा) छंद- सार
अनुशासन
से अब नहिं चलती, प्रकृति और सत्ताएँ.
इन
पर कलियुग की छाया है आती हैं बाधाएँ.
बल,
मद, अहं, अवज्ञा, सारे अस्त्र कारगर देखे,
हर
युग में बदली हैं इनसे संस्कृति व सभ्यताएँ.
(2) विलोम शब्द कृपा // कोप
मुक्तक- कृपा
आधार
छंद- सार मात्रा भार 28. 16,12 पर यति अंत 22
कृपादृष्टि
से ही निसर्ग के, मौसम साँझ-सकारे.
भाग्य
बना है संस्कार से, कर्म जनित है जीवन
कैसे
होगी कृपा करे जो, कुछ भी बिना विचारे.
मुक्तक- कोप
आधार
छंद- सरसी, मात्रा भार 27. 16,11 पर यति अंत 21
करे-धरे
इंसान, प्रकृति पर, लगते हैं आरोप.
यदा
कदा तब प्रकृति दिखाती, ही है अपना कोप,
आरोपों-प्रत्यारोपों
पर, जब-जब झगड़े व्यक्ति,
सीमाओं
को लाँघ हुई है, सहनशीलता लोप.
अतिथि
संस्कृति
है अपनी ‘अतिथि देवोभव’, जाना जाये.
आदर्श है ‘सत्यमेव जयते’, पहचाना जाये.
’नीर-क्षीर-विवेक’ न्यायप्रिय ही है, भारत अपना,
'वसुधैवकुटुम्बकम्’ सर्वसिद्ध, यह माना जाये.
आदर्श है ‘सत्यमेव जयते’, पहचाना जाये.
’नीर-क्षीर-विवेक’ न्यायप्रिय ही है, भारत अपना,
'वसुधैवकुटुम्बकम्’ सर्वसिद्ध, यह माना जाये.
आतिथेय
हो
संवेदनशील, विनम्र, हो संस्कारी वह.
ज्ञानी भी आचार-विचार का, हो भारी वह.
वातावरण हमेशा घर में, हो सुव्यवस्थित,
तभी आतिथेय धर्म निभे, हो आभारी वह.
ज्ञानी भी आचार-विचार का, हो भारी वह.
वातावरण हमेशा घर में, हो सुव्यवस्थित,
तभी आतिथेय धर्म निभे, हो आभारी वह.
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