छंद-
पदपादाकुलक
रंगो में रँग जा तू सबके,
रँग जाती कभी हिना बन कर,
जल जाऊँ चाहे जीवन में,
है चाह यही मैं जीवन में,
शिल्प
विधान-
एक चरण में 16 मात्रा.
आदि और अंत में गुरु
(2 या 11) आवश्यक. पहले द्विकल के बाद यदि त्रिकल आता
है तो
उसके बाद एक और त्रिकल आना चाहिए.
(लय- उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है.)
(लय- उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है.)
हो ले सबकी होली बोली.
रंगों से भर दे हर झोली .
रंगो में रँग जा तू सबके,
जैसे मैं सब के सँग हो ली.
रँग जाती कभी हिना बन कर,
घर में बन जाऊॅ रँगोली.
जल जाऊँ चाहे जीवन में,
सीने पर खालूँ मैं गोली.
है चाह यही मैं जीवन में,
खेलूँ न कभी काली होली.
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