छंद-
दोहा
पुरी
धाम सब तीर्थ में, घूमे बारम्बार.
हुई
न अब तक प्रेरणा, हुआ न बेड़ा पार.
क्यों
ढूँढूँ संसार में, प्रभु मेरे मन द्वार
नैन
बंद कर भज लिया, कर ली बातें चार.
प्रभु
को भजना बाद में, पहले पूजो पेट
भजन
न हो भूखे कभी, कहता है संसार.
बन
जाते हैं वे सभी, स्थल संगम तीर्थ
मिल
जाती नदियाँ जहाँ, हो जातीं इक धार.
पुजते
हैं स्थान सब, कहलाते हैं तीर्थ,
दक्षिण
से उत्तर जहाँ, बहे नदी की धार.
जब
तक हो ना प्रेरणा, योग न हों अनुकूल
दुर्लभ
प्रभु के दर्श हैं, ग्रंथों का भी सार.
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