छंद-
विजात
मापनी-
1222 1222
समांत-
आयें
पदांत-
हम
चलें
होली जलायें हम
रँगें
होली मनायें हम.
घृणा
की होलिका बालें
यही
बीड़ा उठायें हम.
मिटा
कर द्वेष कटुताएँ
गले
सबको लगायें हम.
मिटे
दिल से कलुष सारे,
न
रिश्तों को लजायें हम
यही
त्योहार लाता है
निकट,
सबको बुलायें हम.
न
हों हैरान अपने भी
न
गैरों को सतायें हम.
चलो
आकुल, किसी को भी
न
होली पर रुलाएँ हम.
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