छंद- कुकुभ
शिल्प विधान- मात्रा भार 30, 16, 14 अंत 2 गुरु से अनिवार्य.
समांत- अर
पदांत- नारी
घर का हर कर्तव्य निभाते, मिल जाती अकसर नारी.
क्या समाज क्या देश आजकल, आगे रहती हर नारी.
किसी मोरचे पर नारी को, कभी न कम आँके मानव,
अब तो दुनिया को मुट्ठी में, करने को तत्पर नारी.
कोई भी हो कर्म क्षेत्र में, स्वयं सिद्ध करने उद्यत,
नहीं गँवाती छोटा हो या, बड़ा कहीं अवसर नारी.
अब कोई भी काम अकेले, नहीं आदमी पर छोड़े,
कंधे से कंधा दे कर अब, साथ खड़ी डटकर नारी.
शिक्षा, खेल, न्याय, सेवा की, अग्रिम पंक्ति में है वह,
भाग ले रही है विकास पथ, पर अब बढ़ चढ़ कर नारी.
-आकुल
शिल्प विधान- मात्रा भार 30, 16, 14 अंत 2 गुरु से अनिवार्य.
समांत- अर
पदांत- नारी
घर का हर कर्तव्य निभाते, मिल जाती अकसर नारी.
क्या समाज क्या देश आजकल, आगे रहती हर नारी.
किसी मोरचे पर नारी को, कभी न कम आँके मानव,
अब तो दुनिया को मुट्ठी में, करने को तत्पर नारी.
कोई भी हो कर्म क्षेत्र में, स्वयं सिद्ध करने उद्यत,
नहीं गँवाती छोटा हो या, बड़ा कहीं अवसर नारी.
अब कोई भी काम अकेले, नहीं आदमी पर छोड़े,
कंधे से कंधा दे कर अब, साथ खड़ी डटकर नारी.
शिक्षा, खेल, न्याय, सेवा की, अग्रिम पंक्ति में है वह,
भाग ले रही है विकास पथ, पर अब बढ़ चढ़ कर नारी.
-आकुल
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