11 मार्च 2018

समझता जानवर भी है (गीतिका)

छंद- विधाता
मापनी 1222 1222 1222 1222
पदांत- की भाषा
समांत- आर

समझता जानवर भी है जगत् में प्‍यार की भाषा ।
उसे लेना न देना है कि क्‍या संसार की भाषा ।।1।।

उसी का हो लिया है वह मिला जिससे भी’ अपनापन ।
तुरत ही सीख जाता है सहज मनुहार की भाषा ।।2।।
 
कहीं भी जानवर हो पालतू या जंगली ही हो,
सिखा देती परिस्थितियाँ उसे खूँखार की भाषा ।।3।।  

बनाते खास हैं उसको निहित वंशानुगत गुण ही,
स्‍वत: वह सीख जाता है, प्रकृति संचार की भाषा ।।4।।

वफा जब जानवर समझे जिसे तुम प्‍यार से पालो,
ते’री हो प्‍यार की भाषा न हो अधिकार की भाषा।।5।।

समझ पाते नहीं हीरे कभी कीमत स्‍वयं की ही,
कभी पत्‍थर समझते हैं न शिष्‍टाचार की भाषा ।।6।।

करिश्‍मा ही लिए प्रारब्‍ध में आते महामानव,   
तराशा है प्रकृति ने तब बनी अवतार की भाषा ।।7।।

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