छन्द-
कीर्ति (वार्णिक)
पदान्त- सारे
समान्त- अन
हरि ओम भजो जन सारे ।
जब जीवन नश्वर प्राणी,
तब
त्याग प्रयोजन सारे ।
अधि लालच मोह न अच्छा
कम
हों भव बंधन सारे ।
मनभेद करे तन मैला,
बस
स्वच्छ रखो तन सारे ।
वसुधैवकुटुम्ब बनाओ,
धनवान-अकिंचन
सारे ।
सब ‘आकुल’ की सुन लो तो
तय जीवन रोशन सारे ।
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