22 अगस्त 2017

चार दिनों का जीवन सारा है (गीतिका)



मापनी-22 22 22 22,22 22  22 
पदांत- है 
समांत- आरा 


श्री राम, कृष्‍ण या कहो, सदा शिव ने आकंठ उतारा है.
कर पान गरल अवतारों ने अरि दुष्‍टों को संहारा है.

मीरा ने पी कर गरल प्रेम को अमर किया है दुनिया में,
है गरल पिया जिसने जग में उसने भवितव्‍य सँवारा है.

धैर्य किये धारण सागर ने सहे विप्‍लव तट के ही सदा,    
पी पी कर गरल समंदर का जल युगों युगों से खारा है.

बह रही प्रदूषित हवा, धरा, है साँस प्रदूषित मानव की,
किस अहंकार में मानव ने फिर जगती को ललकारा है,

‘आकुल’ जीवन में मानव और प्रकृति में रहें सम्‍बंध मधुर.
आकंठ रहे प्रेमामृत चार दिनों का जीवन सारा है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें