17 अगस्त 2017

इक मुसकान दे आओ

छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- दे आएँ
समांत- आन

किसी रोते हुए बच्चे, को’ इक मुसकान दे आओ.
किसी भूखे की’ झोली में, निवाला दान दे आओ.

कभी रोना कभी हँसना, यही जीवन सुदर्शन है,
किसी निर्धन के’ घर जाकर, उसे सम्मान दे आओ.

कहाँ मिलती हैं’ जीवन में, सभी को ही सफलतायें,
युवा पीढ़ी न भटके उन को' इक अभियान दे आओ.

अकेला जो चला है काफ़ि‍ले मिलते उसी को हैं,
अगर वे राह में पायें, उन्हें कुछ मान दे आओ.

दिया क्या देश ने तुमको, जरूरी ये नहीं ‘आकुल’,
दिया क्या देश को तुमने, यही पहचान दे आओ.

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