छंद- रोला (11,13, विषम चरणांत 21, सम चरणांत 12/111)
पदांत- छोड़ना
समांत- आर
जीवन में तू हाथ,
कभी मत यार छोड़ना.
अपनों का मत साथ,
बीच मझधार छोड़ना.
तुझे मिला संसार,
मिली है प्रीत यार की,
मिलता यह हरबार,
नहीं मत प्यार छोड़ना.
रिश्ते ही गुलजार,
किया करते हैं घर को,
कभी नहीं मनुहार,
अतिथि सत्कार छोड़ना.
गुड़ से चींटे, नाग,
सदा चंदन से लिपटें,
लगे न इनसे दाग, इन्हें
साभार छोड़ना.
जर, जोरू व जमीन,
सदा इतिहास विरचते,
इनके लिए कभी न, कहीं
संस्कार छोड़ना.
रखना तू पहचान, मगर
रिश्तों के चलते,
रखना तू यह ध्यान, नहीं
घर-बार छोड़ना.
मात-पिता का मान,
नहीं लज्जित ‘आकुल’ हो,
रहे सर्वोच्च स्थान
, नहिं निराधार छोड़ना.
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