पदांत- हुआ
समांत- इत
छटा बिखेरी बरखा ने, कण-कण अब हरित हुआ.
हवा चली मदमाती अब, जल-थल-नभ मुदित हुआ.
स्वच्छ प्रकृति को देख मिला, मानव को यह दर्शन,
स्वच्छ धरा पर ही’ स्वर्गिक, आनंद है विदित हुआ.
संजीवन है बरखा का जल, संचित करें इसे,
स्वत: भूमि पर वर्षा से, जीवन प्रस्फुटित हुआ.
लदे वृक्ष से शिखर हुए, वन सघन सुशोभित,
फूलों, वृक्षों से गुलशन, हर पथ पल्लवित हुआ.
पर्यावरण प्रदूषण के प्रति, जन जाग्रति आये,
परिवर्तन होते हैं जब भी, जीवन व्यथित हुआ.
समांत- इत
छटा बिखेरी बरखा ने, कण-कण अब हरित हुआ.
हवा चली मदमाती अब, जल-थल-नभ मुदित हुआ.
स्वच्छ प्रकृति को देख मिला, मानव को यह दर्शन,
स्वच्छ धरा पर ही’ स्वर्गिक, आनंद है विदित हुआ.
संजीवन है बरखा का जल, संचित करें इसे,
स्वत: भूमि पर वर्षा से, जीवन प्रस्फुटित हुआ.
लदे वृक्ष से शिखर हुए, वन सघन सुशोभित,
फूलों, वृक्षों से गुलशन, हर पथ पल्लवित हुआ.
पर्यावरण प्रदूषण के प्रति, जन जाग्रति आये,
परिवर्तन होते हैं जब भी, जीवन व्यथित हुआ.
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