मापनी- 221 2121 1221 212
पदांत- ग़ुज़ारिए
समांत- अर
ये ज़िंदगी कभी नहिं, दर-दर ग़ुज़ारिए.
ये ज़िंदगी अमोल है’, बे’हतर ग़ुज़ारिए.
ये हार-जीत का नहिं, है दाँव ज़िंदगी,
ये ज़िंदगी सुक़ून से’, जी भर ग़ुज़ारिए.
वो आफ़ताब भी तो’, कर रहा है’ रोशनी
ये आग भी ज़ुरूरी’ है’, जल कर ग़ुज़ारिए.
सब फूल खुद लुटा के’, सदा दे रहे महक
तुम बन के’ बाग़बान सा’, रहबर ग़ुज़ारिए.
तुम स्वाभिमान से जियो’, ‘आकुल’ ये’ ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी को’ बन के’, युगंधर ग़ुज़ारिए.
पदांत- ग़ुज़ारिए
समांत- अर
ये ज़िंदगी कभी नहिं, दर-दर ग़ुज़ारिए.
ये ज़िंदगी अमोल है’, बे’हतर ग़ुज़ारिए.
ये हार-जीत का नहिं, है दाँव ज़िंदगी,
ये ज़िंदगी सुक़ून से’, जी भर ग़ुज़ारिए.
वो आफ़ताब भी तो’, कर रहा है’ रोशनी
ये आग भी ज़ुरूरी’ है’, जल कर ग़ुज़ारिए.
सब फूल खुद लुटा के’, सदा दे रहे महक
तुम बन के’ बाग़बान सा’, रहबर ग़ुज़ारिए.
तुम स्वाभिमान से जियो’, ‘आकुल’ ये’ ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी को’ बन के’, युगंधर ग़ुज़ारिए.
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