27 अगस्त 2017

समंदर अभी तक भी हारा नहीं है (गीतिका)

छंद- वाचिक भुजंगप्रयात
मापनी- 122 122 122 122
पदांत- नहीं है
समांत- आरा
समंदर अभी तक भी’ हारा नहीं है.
उसे चाँद से कम गवारा नहीं है.

रही उसकी' चाहत, सदा चाँद ही की,
कभी चाँदनी को, पुकारा नहीं है.

किया जिसने' रोशन, है' जीवन किसी का,
मिला उसको' टूटा, सितारा नहीं है.

जो' गहरे में' जाकर ले' आते हैं मोती,
उन्‍हें जल समंदर का' खारा नहीं है.

चला है जो' हरदम ही' नेकी के पथ पर,
कभी भी वो’ इंसान हारा नहीं है.

नहीं जो चला है समय के मुताबिक,
जमाने ने' उसको सँवारा नहीं है.

अकर्मण्य बन के जो' जीता रहा है,
वो’ बोझिल है’ जग पर, बे’चारा नहीं है.

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