28 नवंबर 2017

चुप रह कर सहते है देखी (गीतिका)



छंद- सरसी
शिल्‍प विधान- चौपाई + दोहे का सम चरण (16,11)] अंत 21 से अनिवार्य
पदांत- की पीर
समांत- अंधों

चुप रह कर सहते है देखी, तटबंधों की पीर.
सहमी आँखों में है देखी, सम्‍बंधों की पीर.

झूठा-सच्चा जब-जब देखा, मौन रहे मन मार,
घर की दीवारों में देखी, प्रतिबंधों की पीर.

बसते उनको कभी न देखा, जिनके घर फुटपाथ,
आजीवन ढोते ही देखी, उन कंधों की पीर.

अब संवेदनशील न देखे, आक्रोषित हैं लोग,
जीवन में पलती है देखी, अनुबंधों की पीर.

तोता चश्‍म बने हैं देखे, सत्‍ता लोलुप लोग, 
’आकुल’ ने जनता में देखी, सौगंधों की पीर.

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