छंद-
सरसी
शिल्प विधान- चौपाई + दोहे का सम चरण (16,11)] अंत 21
से अनिवार्य
पदांत-
की पीर
समांत-
अंधों
चुप
रह कर सहते है देखी, तटबंधों की पीर.
सहमी
आँखों में है देखी, सम्बंधों की पीर.
झूठा-सच्चा
जब-जब देखा, मौन रहे मन मार,
घर
की दीवारों में देखी, प्रतिबंधों की पीर.
बसते
उनको कभी न देखा, जिनके घर फुटपाथ,
आजीवन
ढोते ही देखी, उन कंधों की पीर.
अब
संवेदनशील न देखे, आक्रोषित हैं लोग,
जीवन
में पलती है देखी, अनुबंधों की पीर.
तोता चश्म बने हैं देखे, सत्ता लोलुप लोग,
’आकुल’ ने जनता में देखी, सौगंधों की पीर.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें