24 नवंबर 2017

मानव को नारी-धरती पर (गीतिका)



छंद- सार
मात्रा भार 28.16,12 पर यति अंत 22 (वाचिक)
पदांत- होना होगा
समांत- इत
 
मानव को नारी-धरती पर, आश्रित होना होगा.
दानवता का खेल न खेले,  शापित होना होगा.  

मूक वेदना सहती प्रतिपल, नारी, धरती दोनों
मानव को हठ और अहम् पर, दण्डित होना होगा.

नवरस की प्रतिरूप है नारी, मानव व्‍यर्थ न छेड़े,
वरना यह इतिहास साक्ष्‍य है, लज्जित होना होगा.

नारी से परिवार सजा है,  धरती स्‍वर्ग बनी है,
मानव ने हर दम लूटा है, कलुषित होना होगा.

नारी बिन धरती पर कैसे, स्‍वर्ग बनेगा ‘आकुल’,
अग्निहोत्र बन नारि धरा पर, मोहित होना होगा. 

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