25 नवंबर 2017

हवा चली अब ऐसी (गीतिका)




मापनी:- 12 12 1122 1212 22
पदांत- झूमें
समांत- अली

हवा चली अब ऐसी गली-गली झूमें.
बहा रही खुशबू से मली-मली झूमें.

उठें चलें निकलें भोर लालिमा छाती,
उड़ी चलें नग टोली भली-भली झूमें.

कभी-कभी भँवरों की हँसी पड़े सुनाई,
बनी-ठनी बगियों की कली-कली झूमें.

फिरें लिये करने सैर प्रेम का वादा,
करें कई मनुहारें अली-अली झूमें.

कहीं नहीं अब कृष्णा कहीं नहीं राधा,
नहीं कहीं जब ड्योढ़ी वहाँ छली झूमें
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