छंद-
गंगोदक
मापनी-
212 x 8
पदांत-
सीख ले
समांत-
अफ़ा
ज़िदगी
से भी’ थोड़ा तू’ मिलना कभी
ज़िदगी है न होती खफ़ा सीख ले.
जानवर
भी हैं’ हँसते जताते नहीं
उन को’
परवा नहीं कोई’ देखे उन्हें
चल
तू’ राहें सदा अपनी’ मस्ती में’ बस
कैसे’
करते हैं’ ग़म को सफ़ा सीख ले.
चाँद
नित सूरतें है बदलता रहे
चाँदनी
फिर भी’ रोशन करे आसमाँ
चाँद
का आसरा फिर भी’ है चाँदनी
मत
रखे मैल मन में किसी के लिए
आज
तू है दुखी कल था’ वह भी दुखी
दिन
नहीं एक जैसे कभी भी रहें,
सब
के हिस्से है’ सुख बस वफ़ा सीख ले.
कर तू’
ऐसा सफ़र ज़िदगी का कटे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें