16 नवंबर 2017

बस वफ़ा सीख ले (गीतिका)



छंद- गंगोदक
मापनी- 212 x 8
पदांत- सीख ले
समांत- अफ़ा

ज़ि‍दगी से भी’ थोड़ा तू’ मिलना कभी
ज़ि‍दगी है न होती खफ़ा सीख ले.
ज़ि‍दगी में हँसाओ हँसो ख़ुद सदा
ज़ि‍दगी में यही फ़लसफ़ा सीख ले.

जानवर भी हैं’ हँसते जताते नहीं
उन को’ परवा नहीं कोई’ देखे उन्‍हें
चल तू’ राहें सदा अपनी’ मस्‍ती में’ बस
कैसे’ करते हैं’ ग़म को सफ़ा सीख ले. 

चाँद नित सूरतें है बदलता रहे
चाँदनी फिर भी’ रोशन करे आसमाँ
चाँद का आसरा फिर भी’ है चाँदनी
ज़ि‍दगी है यही हर दफ़ा सीख ले.

मत रखे मैल मन में किसी के लिए
आज तू है दुखी कल था’ वह भी दुखी
दिन नहीं एक जैसे कभी भी रहें,
सब के हिस्‍से है’ सुख बस वफ़ा सीख ले.

कौन है ज़ि‍दगी में हुआ है अमर
नाम रहता है’ ये चाम रहता नहीं
कर तू’ ऐसा सफ़र ज़ि‍दगी का कटे
हो बराबर का’ नुकसाँ-नफ़ा सीख ले.

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