मात्रा
भार- 30. 16,14 पर यति, अंत गुरु वाचिक से.
पदांत-
सभी
समांत-
एख
हम
किस ओर चले क्या भूले, मानवता के लेख सभी.
है
कैसा यह दौर बने हैं, दानवता के शेख सभी.
छला
प्रकृति को, छला धरा को, हर प्राणी जा रहा छला,
और
करेगा कितनी भूलें, अनदेखा कर देख सभी.
क्यों
मानव ने दे डाली फिर, एक चुनौती जगती को,
मानव
क्यों न समझ पाता हैं, मानव के उल्लेख सभी.
हवा
प्रदूषित, भोर प्रदूषित, मौसम के व्यवहार दुखी,
खो
देगी जब धीर प्रकृति भी, खो देंगे अभिलेख सभी.
शून्य
पथों पर विचरण करते, चाँद सितारे सूरज सब,
क्या
देखेंगे शून्य धरा पर, मानव के पद रेख सभी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें